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Saturday, February 19, 2011

फेसबुकिया संघ !!

आज "जय श्री राम " और "अल्लाह हु अकबर" का प्रयोग किसी भक्ति पूजा इबादत के लिए नही बल्कि नारे के तौर पर हो रहा है ....... जाने कहा गए वो कवी गीतकार या देशभक्त जो कभी लिखकर मर गए की ....... "मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना" !

कभी बचपन में देखा था मैंने की अक्सर दादी अपने खाली क्षणों में एक कापी पर "जय श्री राम" तुलसी के पत्तों पर चन्दन से "राम-राम" लिखा करती थी , आज भी मेरी नानी सारा दिन "राम-राम" लिखा करती है और सात्विक जीवन जीती है .....किन्तु आज फेसबुक पर देखती हूँ की "जय श्री राम" ऐसे प्रयोग किया जाता है की जैसे वे शब्दों से ही लोगो को डरा देंगे ...........खिलवाड़ बना रखा है अपने अराध्य के नाम का भी इन तथाकथित फेसबुकिया राम भक्तो ने .....!!

मेरी सारी शिक्षा संघ के स्कूल में हुयी .... संघ को शुरू से ही माना है मैंने उसको बहुत सम्मान दिया है किन्तु अब फेसबुकिया संघ कि दुर्दशा देखकर दुःख होता है !

फेसबुकिया संघ तो अब जैसे नए -नवेले छछुन्दरो का गढ़ बनता जा रहा रहा है ...... यहाँ के शोहदे लडकिया छेड़ते है , उन्हें धमकी देते है और उनके साथ बदतमीजी करते है और संघ के वरिष्ठ लोग उन्ही शोहदों को गर्व से प्रश्रय देते है .....अगर ऐसे गधो के बारे कुछ बोलो भी तो कुछ तथाकथित संघी नौटंकी छाप देशभक्ति के मुखौटे लगा कर दल- बल सहित खड़े हो जायेंगे कहेंगे की लड़की को छेड़ना देश भक्ति के आड़े थोड़े ही आता है.....और अजी हम तो ऐसे नही है , आप एक के कारण सभी को ऐसा कैसा कह सकती है ......दूसरा यह भी की उसके विचार तो देश के लिए बड़े अच्छे है .... ...... मेरा तो ऐसो को यही जवाब है की "अजी अगर आप ऐसे नही है तो मुझे यहाँ दल-बल के साथ मिलकर समझाने के बजाये अपनी उर्जा इन छछुन्दरो को भगाने में क्यों नही प्रयोग करते ??'

हो सकता है की ये देशभक्त लोग यह भी मुझे कहे की हम ये छोटी-मोटी सुलझाने के लिए नही है ...... अजी हमें तो बड्डी-बड्डी समस्या सुलझानी है ..... देखती नही की सोनिया आंटी देश का सारा पैसा लेकर भागी जा रही है और आप कह रही है की लडकियों को छेड़ने से बचाओ .!

मैंने देखा है की किसी और संघठन में अगर किसी को कुछ हो जाता है तो संगठन के अन्य सदस्य उसके परिवार पर पूरा ध्यान देते है किन्तु अगर संघ कार्य में सम्मिलित में किसी संघी को कुछ हो जाए तो संघ के बाकी सदस्य तो उसके दरवाजे झाँकने तक नही जायेगे और दस लांछन उस परिवार पर और जड़ देंगे ताकि वह परिवार उनसे मदद की उम्मीद भी न कर सके ....... क्या ऐसे घिनौने आचरण के बदौलत ही अखंड भारत के निर्माण का स्वप्न देखा जा रहा है ?

शायद ऐसे ही लोगो के बदौलत आज संघ की ये दुर्दशा है !!

__________________________________मीतू Copyright ©

Thursday, February 10, 2011

खेल शराफत का !!


वो एक शरीफ आदमी है , बस दूर से ही स्त्रियों को घूरता रहता है , भीड़ भरे जगह पर अपने कंधे महिलाओ के कंधे से रगड़कर निकल जाता है , लेकिन इससे शराफत का क्या लेना-देना , ये सब करने से शराफत में कौनो कमी थोड़े ही आ जाती है ..... अपनी बीबी को घुमाने ले जाता है , बच्चो को पूरा प्यार देता है .... पड़ोसियों से अच्छा व्यहार रखता है .... उसके खिलाफ कोई कही शिकायत भी नही है .... अब नज़रे है थोड़ी बहुत मचल जाए तो इसमें ओकर का दोष , ई तो आजकल ही लडकिया ही है जो की कमबख्त मारी ऐसा ड्रेस पहन कर निकलती है .....कि आँख और दिल कुछ काबू में ही नही रहता ............!!

अब उ शरीफ आदमी कि तनिक शराफत देखिये जब भी बालकनी में खड़ा रहा और नीचे सड़क पर से अगर कोई सुन्दर कन्या निकल गयी तो जब तक वो ओझल न हो जाए आँखे उसी कि और टकटकी लगाए देखती है अगर पत्नी टोक दे तो उ का है न कि लडकिय इतनी बन-ठन के निकली रही निगाह ओसे हटते नाही रहा ,... ससुरी ज़माना ही खराब है ... अब इन लड़कियन के कौन समझाए .....

हमारे एक ममेरे भाई है, बहुतय शरीफ है , आज से करीब १५-१६ वर्ष पहले कि बात है ................. Boys High School , Allahabad में निर्णय हुआ कि इस वर्ष कामर्स कि क्लास को-एड चलेगी ...... दे दना दन लड़कियन का एड्मिसन भया ....उहाँ पढ़े वाले लड्कवन के तो जैसे फ़ोकट में लाटरी लगी गयी ..... कल तक जे नहा के नै जात रहा अब उ सेंट-पाउडर लगा के स्कूल जाए लगा ।!

अब कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े वाली लडकिया , को-एड हुआ तो का हुआ उ कोई हमरे तरह मूरख गंवार थोड़े ही थी जो पूरा कपडा पहिन के स्कूल आवे , मिनी स्कर्ट पहिनने में स्मार्टनेस जो आती है ! हमरे भईया तो जैसे छुट्टी कि घंटी बाजत रही राकेट के जैसे भाग के सीढ़ी के नीचे आकर शराफत से खड़ा हो जाते थे ...... उ का रहा न जब ऊपर सीढ़ी से मिनी स्कर्ट पहिन के लड़कियन नीचे उतरत रहीं तो नीचे से उनकर टांग देखे के आनंदे कुछ अउर आवत रहा ...... अउर एहमे शराफत में कमियों नाही आवत रही !!

एक बार भैया छत पर पर खड़े थे ... बगल के ही छत पर २-३ लडकिय अउरो खड़ी थी उनको देखकर भैया को जाने का सूझी कौनो गाना - साना गुनगुनाई दिए और कुछ अश्लील इशारा भी कर दिए .,, मुहल्ले की बात रही , घर पर आ गया ओरहन ..... मामा ने तो समझा दिया अच्छे से ओरहन देने वाले को कि उनका बेटवा बहुतय शरीफ है बेहतर होगा कि आप अपने बिटिया को घर से बाहर न निकाले ... लड़का जवान हो रहा हो रहा है ,काहे रखते हो अपनी बिटिया को ऐसे कि हमारे बेटवा का दिल मचलने लगे.... ??..

अगर कभी हमारे उ भैया को किसी लड़की को अपने बाईक पर बैठाने का मौका मिल जाता था , तो गाडी में इतने ब्रेक लगते थे की पूछिए मत , और उन्हें हर स्पीड ब्रेकर पर अपनी बाईक चढ़ानी जरुरी होती थी ..... लेकिन भैया हमारे निहायत शरीफ थे !!

हमारे एक अंकल जी है , उ भी बड़का वाले शरीफ है .... बस होली वाले दिन तनिक बौरा जाते है .... कालोनी भरे की भौजायिन से बड़ी पटती है उनकी .... होली के दिन तो उनका शराफत वाला रंग देखते ही बनता है !

पिछले होली की ही बात है सारे कालोनी वाले आपस में होली खेल रहे थे , मैं भी अपने छत पर खड़ी होकर कालोनी की होली का आनंद ले रही थी .....चौराहे पर बड़ा सा रंग भरके ड्रम रखा था ... अचानक उ वाले अंकल जी उठे और महिलाओ की टोली में सबको रंग लगते-लगते एक आंटी जी का हाथ पकड़कर घसीट लाये ... पाहिले तो आंटी जी (उनके हिसाब से भौजी) और अंकल जी एक दुसरे को रंग लगाये अचानक हम देखते का है __ ए भईया ' , अंकल जी ने तो आंटी जी को कीचड में धम्म से पटक दिया अउर लगे इहाँ-उहाँ जाने कहाँ-कहाँ रंग लगाने.... हम तो दंग रह गए अंकल जी की ई शराफत देखकर ..... तबहिन हमारी अम्मा जी अंदरे से बेड पर बैठी-बैठी चिल्लाई " चल मितुआ अन्दर , नही तो हम भेज रहे है पापा को ऊपर ",.... काजनी कहाँ से उनकी कौन सी तीसरी आँख है जो की घरे के अंदरे से बैठे - बैठे पता लग जाता है कि उनकी बिटिया का देख रही है ...!!

फिलहाल हम चुपचाप नीचे कमरे में आ गए , इससे ज्यादा शराफत देख नही पाए .... कालोनी में एक अंकल जी माईक लेकर अपनी बेसुरी आवाज में गा रहे थे " होली खेले रघुबीरा बिरज में, होली खेले " और उ वाले अंकल जी की शराफत हमारे आँख के आगे बहुत दिनों तक नाचत रही !!

एक भईया थे हमारे पड़ोस में बहुतय शरीफ , उनके पढाई के चर्चे दूर-दूर तक थे ,उनके कोई बहन नही थी हर साल हमसे राखी बंधवाते थे और इस रिश्ते से वे अक्सर हमारे घर आते थे ..... प्यार वो हमसे करते थे लेकिन बड़े ही प्यार से वे हमारी सहेलियों को ताका करते थे ......अब लगातार ताकने भर से कोई शराफत थोड़े ही कम हो जाती है .... एक दिन बड़ा गुस्सा आया और हम हाथ जोड़ लिए ऐसे रिश्ते से !

आजकल शराफत है क्या ? अपनी परिवारी जिम्मेदारियों को पूरा करना , समाज में घुल-मिल कर रहना ... अपने कार्य क्षेत्र में निपुण होना ... वो तो ये सारे लोग कर ही रहे है !

दरअसल अब शराफत शब्द का दायरा व्यापक हो गया है देख लीजियेगा कहीं इसके पड़ताल के बहाने आपको अपने गिरेबान में झाँकने की जरुरत तो नही ??? मीतू ०६०९२०१० सायं ८:०३ Copyright ©

दिनांक १०-२-११ अपरान्ह २:३०

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Sunday, February 6, 2011

आज के सन्दर्भ में बुरके का औचित्य !


कुरान में कहा गया है कि____

एक औरत को अपनी सुन्दरता का प्रदर्शन नही करना चाहिए . इनको ऐसा कपडा पहनना चाहिए जो इनको सर से पैर तक ढक सके जिससे इनकी खूबसूरती किसी को न दिखाई दे सिवाय उस औरत के पति, बच्चों, पिता, ससुर, भाई, भाई के बच्चों, बहन के ...बच्चों, नारी जाती या ऐसे पुरुष जो उस औरत से काम-भावना न रखता हो !(कुरान सुरा नूर अध्याय: प्रकाश. 31 कविता)

मैं हालांकि सभी धर्मो का बराबर सम्मान करती हूँ किन्तु जब मैं अपने धर्म की अच्छाइयो -बुराईयों पर वाद-विवाद करती हूँ तो आज मेरे मन में बुर्के के औचित्य को लेकर कुछ अनसुलझे सवाल है जिसे मै अपने इस पोस्ट के माध्यम से अपने मित्रो से पूछना चाहूँगी ….आप सभी से यह गुजारिश है की मेरी इस बात को कृपया धर्म से जोड़कर न देखें.

मैं कुछ उदाहरण आपलोगों के सामने फोटो के साथ व् कुछ समाचार पत्रों से मिली जानकारी एवं कुछ अपने अनभुव सांझा करती हूँ फिर आप बताइये की क्या उसका औचित्य आज भी आज भी वही है जो पूर्वजो ने सोचा था ..?? आज के असुरक्षित समय में क्या बुरका पहनना वास्तव में सुरक्षित है ??

____हाल ही में लालगढ़ में माओवादी आतंकवादियों की रैली में पहुंची ममता बैनर्जी की सभा से भी एक ऐसे ही अपराधी को कब्जे में लिया गया जो खुद को बुर्के में छुपाकर अपनी गतिविधी को सुरक्षाबलों की नजरों से बुर्के के सहारे छुपा रहा था।

____काबुल में भारतीयों पर हमला करने वाले मुस्लिम आतंकवादी भी अपने विस्फोटक बुर्के में छुरपाकर ही लाए थे। जिसमें भारतीयों को जानमाल का भारी नुकसान उठाना पड़ा।

____मुंबई के वीएन देसाई अस्पताल से 2 महीने के बच्चे की चोरी के मामले में पुलिस को सीसीटीवी फूटेज से एक अहम सुराग हाथ लगा। पुलिस को पता चला कि बच्चा चुराने में बुरका पहने महिला का हाथ है !इससे पहले लोकमान्य तिलक अस्पताल में भी एक बुर्का पहने व्यक्ति ने 4 दिन के बच्चे की चोरी की थी।पिछले वर्ष फरवरी महीने में सायन के बीएमसी अस्पताल से एक 10 दिन के बच्चे को चुराकर ऐसी ही एक महिला फरार हो गई थी जिसका आज तक पुलिस पता नही लगा पाई है और इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर बीएमसी को लापरवाही रवैए के चलते इस बच्चे के मा बाप को 1 लाख रूपए का हर्जाना भी भरना पडा है।

___गीत निर्देशक हिमेश रेशमिया ने मंगलवार रात बुर्का पहनकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जियारत की और मन्नत मांगी !

हिमेश रेशमिया ने भीड़ से बचने के लिए बुरके का इस्तेमाल किया !

गौरतलब है कि दिसंबर महीने में ऐश्वर्या राय ने भी बुर्का पहनकर दरगाह की जियारत की थी।

___इंदौर. सियागंज में बदमासो ने बुर्का उठाकर इन्दर नाम के बन्दे को गोलियां दागी,वे पुलिस को चकमा देने के लिए बुरका पहन रखे थे !

_______मेरी एक परिचित मुस्लिम लड़की है मैंने देखा है की वो आराम से बुरके की आड़ में कालेज समय में अपने पुरुषमित्र के साथ निडर होकर बाईक पर बैठकर घूम आती है उसने मेरी एक सहेली को भी ऐसा करने की सलाह दिया ! अब मेरी सहेली का मित्र भी अपने बाईक के डिग्गी में बुरका रखता है और जब जी चाहता है उसे बुरका पहनाकर आराम से बाहर ले जाता है !

____ अभी पिछले वर्ष ही दिल्ली के करोल बाग़ के एक ज्वेलरी की शॉप से तीन बुर्के वाली महिलाओ को जेवर चुराते हुए धरा गया !

अब आप इन घटनाओ को देखते हुए बताइए की क्या सच में कुरआन में जो बुरके को लेकर लिखा गया है वो मकसद पूरा हो रहा है ?

कही बुरके की आड़ में अश्लीलता और अपराधिक घटनाओं को अंजाम तो नही दिया जा रहा है ?

बुर्के की आड़ में बढती हुयी अपराधी घटनाओ को देखते हुए बेल्जियम और फ्रांस के बाद अब यूरोपीय देश जर्मनी में बुर्के पर प्रतिबंध की ओर बढ़ रहा है। जर्मनी के एक प्रांत हिस्से में महिला सरकारी कर्मचारियों के बुर्का पहनने पर पाबंदी लगा दी गई है।

फ़्रांस में कुछ महिलाओं ने खुली टांगो के साथ बुरका पहनकर बुर्के का मजाक उड़ाया खैर उन्हें तो शर्मो-हया से कोई लेना देना ही नही है किन्तु उनको क्या कहेंगे जब कोई औरत खुद को मुसलमान भी कहती है और बेहिजाब भी रहती है एवं बुर्के की आड़ में अश्लीलता भी फैलाती है !

महिलाओं के खिलाफ इस्लामिक रुढ़िया सर चढकर बोलती हैं। पुरुष नमाज़ पढने के साथ-साथ गैर इस्लामिक हरकत कर सकता है। शराब पी सकता है, गलत ढंग से दौलत अर्जित कर सकता है, पर स्त्री पर गलत नजर डाल सकता है, पर उस पर इस्लामिक रुढ़िया काल नहीं बनती। आखिर महिलाओं को ही रुढ़ियों का शिकार क्यों बनाया जाता है।आखिर कब तक महिलाओं को मजहबी रुढ़ियों का शिकार बनाया जाता रहेगा ? अब वक्त आ गया है की वक्त के साथ कदम मिलकर चला जाए , इन बेमतलब के सड़े-गले रुढियो से हमारे समाज को मुक्त किया जाए !

बुर्के की वजह से आज हमारे देश और समाज को बहुत नुक्सान हो रहा है और आगे भी नुक्सान होने की सम्भावना है इस बारे में हमारे बुद्धिजीवी मुस्लिम बंधुओ को देश और समाज के हित में गंभीरता से विचार करना चाहिए !! भारत कि मुस्लिम महिलाये पाकिस्तानी या अफगानिस्तानियो से अधिक अच्छा बौद्धिक स्तर रखती है , उनको आवश्यकता है कि इन रुढिवादी धारणाओ को त्याग कर अपने विकास पर ध्यान दें !!

नोट :- मित्रो से अनुरोध है की वे भी बुरके के बारे में उदाहरण समेत अपने विचार रखे !!

________________________मीतू Copyright © 07022011

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Wednesday, February 2, 2011

उधेड़बुन ...कुछ यूँ ही !



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नही नही .... कुछ नही .... कुछ भी नही ..... शायद खामोश रहना ही अच्छा है ..... लेकिन इस ख़ामोशी के आवरण में मेरा दम घुट जाए ..... क्या करू ..... तुमसे कहू ..... तुम वो तो नही ...... तुम मेरी हो के नही ....... चलो मान लेती हूँ उनकी बात ........ लेकिन कहाँ ले जाऊं अपने दिल के ज़ज्बात .... कशमकश में हूँ ..... किससे कहू .... कैसे चुप रहू ..... कही मैं कर्ण तो नही ....... कहीं मैं दुर्योधन के शरण में तो नही ...... लेकिन उसके शरण में तो मृत्यु है ..... तो क्या जिंदगी मेरे अपनों के हाथ है ..... क्या सच में वे अपने मेरे साथ है ....... लेकिन विश्वाश्घात तो विश्वासपात्र ही करते है ...समझाओ मत मुझे रिश्तो के दर्शन ...... जानना भी नही चाहती ..... क्या कहू .... क्या करू ..... पहले तुम्हे समझ लू फिर साथ चलू ...... कभी धूप निराकार .... कही सपनो ने लिए आकार .....आज जो तुमने कहा ... उसने भी मुझसे कहा था कभी ...... फिर जाने वे शब्द कहाँ खो गए .... शायद मेरी नींद में सपने सो गए ..... अब नही यकीन सपनो पर .... चलो आओ हकीकत में तुम .... इब ख्वाबो से बाहर .... चलो तलाशे कोई ऐसी जिंदगी ..... जहां तुम्हे कोई गम हो ..... जहा मेरी आँख नम हो ..... क्या मिलेगी कहीं मेरे हिस्से की वो जमीन .. क्या करूँ .... तू ही बोल ..... खामोश कैसे रहूँ ..... घुटी साँसों के बीच आवाज़ भी तो नही निकलती है ......नही नही ...कुछ नही ....... कुछ भी नही ...!.????__________मीतू !!
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