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Thursday, February 10, 2011

खेल शराफत का !!


वो एक शरीफ आदमी है , बस दूर से ही स्त्रियों को घूरता रहता है , भीड़ भरे जगह पर अपने कंधे महिलाओ के कंधे से रगड़कर निकल जाता है , लेकिन इससे शराफत का क्या लेना-देना , ये सब करने से शराफत में कौनो कमी थोड़े ही आ जाती है ..... अपनी बीबी को घुमाने ले जाता है , बच्चो को पूरा प्यार देता है .... पड़ोसियों से अच्छा व्यहार रखता है .... उसके खिलाफ कोई कही शिकायत भी नही है .... अब नज़रे है थोड़ी बहुत मचल जाए तो इसमें ओकर का दोष , ई तो आजकल ही लडकिया ही है जो की कमबख्त मारी ऐसा ड्रेस पहन कर निकलती है .....कि आँख और दिल कुछ काबू में ही नही रहता ............!!

अब उ शरीफ आदमी कि तनिक शराफत देखिये जब भी बालकनी में खड़ा रहा और नीचे सड़क पर से अगर कोई सुन्दर कन्या निकल गयी तो जब तक वो ओझल न हो जाए आँखे उसी कि और टकटकी लगाए देखती है अगर पत्नी टोक दे तो उ का है न कि लडकिय इतनी बन-ठन के निकली रही निगाह ओसे हटते नाही रहा ,... ससुरी ज़माना ही खराब है ... अब इन लड़कियन के कौन समझाए .....

हमारे एक ममेरे भाई है, बहुतय शरीफ है , आज से करीब १५-१६ वर्ष पहले कि बात है ................. Boys High School , Allahabad में निर्णय हुआ कि इस वर्ष कामर्स कि क्लास को-एड चलेगी ...... दे दना दन लड़कियन का एड्मिसन भया ....उहाँ पढ़े वाले लड्कवन के तो जैसे फ़ोकट में लाटरी लगी गयी ..... कल तक जे नहा के नै जात रहा अब उ सेंट-पाउडर लगा के स्कूल जाए लगा ।!

अब कॉन्वेंट स्कूल में पढ़े वाली लडकिया , को-एड हुआ तो का हुआ उ कोई हमरे तरह मूरख गंवार थोड़े ही थी जो पूरा कपडा पहिन के स्कूल आवे , मिनी स्कर्ट पहिनने में स्मार्टनेस जो आती है ! हमरे भईया तो जैसे छुट्टी कि घंटी बाजत रही राकेट के जैसे भाग के सीढ़ी के नीचे आकर शराफत से खड़ा हो जाते थे ...... उ का रहा न जब ऊपर सीढ़ी से मिनी स्कर्ट पहिन के लड़कियन नीचे उतरत रहीं तो नीचे से उनकर टांग देखे के आनंदे कुछ अउर आवत रहा ...... अउर एहमे शराफत में कमियों नाही आवत रही !!

एक बार भैया छत पर पर खड़े थे ... बगल के ही छत पर २-३ लडकिय अउरो खड़ी थी उनको देखकर भैया को जाने का सूझी कौनो गाना - साना गुनगुनाई दिए और कुछ अश्लील इशारा भी कर दिए .,, मुहल्ले की बात रही , घर पर आ गया ओरहन ..... मामा ने तो समझा दिया अच्छे से ओरहन देने वाले को कि उनका बेटवा बहुतय शरीफ है बेहतर होगा कि आप अपने बिटिया को घर से बाहर न निकाले ... लड़का जवान हो रहा हो रहा है ,काहे रखते हो अपनी बिटिया को ऐसे कि हमारे बेटवा का दिल मचलने लगे.... ??..

अगर कभी हमारे उ भैया को किसी लड़की को अपने बाईक पर बैठाने का मौका मिल जाता था , तो गाडी में इतने ब्रेक लगते थे की पूछिए मत , और उन्हें हर स्पीड ब्रेकर पर अपनी बाईक चढ़ानी जरुरी होती थी ..... लेकिन भैया हमारे निहायत शरीफ थे !!

हमारे एक अंकल जी है , उ भी बड़का वाले शरीफ है .... बस होली वाले दिन तनिक बौरा जाते है .... कालोनी भरे की भौजायिन से बड़ी पटती है उनकी .... होली के दिन तो उनका शराफत वाला रंग देखते ही बनता है !

पिछले होली की ही बात है सारे कालोनी वाले आपस में होली खेल रहे थे , मैं भी अपने छत पर खड़ी होकर कालोनी की होली का आनंद ले रही थी .....चौराहे पर बड़ा सा रंग भरके ड्रम रखा था ... अचानक उ वाले अंकल जी उठे और महिलाओ की टोली में सबको रंग लगते-लगते एक आंटी जी का हाथ पकड़कर घसीट लाये ... पाहिले तो आंटी जी (उनके हिसाब से भौजी) और अंकल जी एक दुसरे को रंग लगाये अचानक हम देखते का है __ ए भईया ' , अंकल जी ने तो आंटी जी को कीचड में धम्म से पटक दिया अउर लगे इहाँ-उहाँ जाने कहाँ-कहाँ रंग लगाने.... हम तो दंग रह गए अंकल जी की ई शराफत देखकर ..... तबहिन हमारी अम्मा जी अंदरे से बेड पर बैठी-बैठी चिल्लाई " चल मितुआ अन्दर , नही तो हम भेज रहे है पापा को ऊपर ",.... काजनी कहाँ से उनकी कौन सी तीसरी आँख है जो की घरे के अंदरे से बैठे - बैठे पता लग जाता है कि उनकी बिटिया का देख रही है ...!!

फिलहाल हम चुपचाप नीचे कमरे में आ गए , इससे ज्यादा शराफत देख नही पाए .... कालोनी में एक अंकल जी माईक लेकर अपनी बेसुरी आवाज में गा रहे थे " होली खेले रघुबीरा बिरज में, होली खेले " और उ वाले अंकल जी की शराफत हमारे आँख के आगे बहुत दिनों तक नाचत रही !!

एक भईया थे हमारे पड़ोस में बहुतय शरीफ , उनके पढाई के चर्चे दूर-दूर तक थे ,उनके कोई बहन नही थी हर साल हमसे राखी बंधवाते थे और इस रिश्ते से वे अक्सर हमारे घर आते थे ..... प्यार वो हमसे करते थे लेकिन बड़े ही प्यार से वे हमारी सहेलियों को ताका करते थे ......अब लगातार ताकने भर से कोई शराफत थोड़े ही कम हो जाती है .... एक दिन बड़ा गुस्सा आया और हम हाथ जोड़ लिए ऐसे रिश्ते से !

आजकल शराफत है क्या ? अपनी परिवारी जिम्मेदारियों को पूरा करना , समाज में घुल-मिल कर रहना ... अपने कार्य क्षेत्र में निपुण होना ... वो तो ये सारे लोग कर ही रहे है !

दरअसल अब शराफत शब्द का दायरा व्यापक हो गया है देख लीजियेगा कहीं इसके पड़ताल के बहाने आपको अपने गिरेबान में झाँकने की जरुरत तो नही ??? मीतू ०६०९२०१० सायं ८:०३ Copyright ©

दिनांक १०-२-११ अपरान्ह २:३०

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