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Thursday, July 21, 2011

लोकतांत्रिक आस्था के कातिल !


किसी भी संसदीय व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का महत्त्व होता है, एक आदर्श संसदीय व्यवस्था वही है जहाँ विपक्ष मजबूत और जागरूक हो जो सत्ता पक्ष पर आदर्श दबाव बनाये रखे, ना की ऐसा विपक्ष जो सरकार को समुचित रूप से उसके कृत्यों पर घेर ना... सके और उसकी नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय विरोध की राजनीति में इतना गम हो जाये की सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने की बजाय व्यक्तिगत जीवन पर आक्षेपो की गन्दी राजनीति में उतर आये !
प्रारम्भ में यध्यपि कांग्रेस का वर्चस्व रहता था परन्तु विपक्ष में अनेक कद्दावर नेता होते थे, लेकिन वर्तमान परिद्रश्य को देखते हुए मेरा चर्चा का विषय इंदिरा युग के अवसान के बाद से शुरू होता है !
१९९० के आस पास से बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही राजनीति रह गयी है तथा अन्य दल मात्र इनके आस पास ही रह गए हैं जो एक अच्छा संकेत हो सकता था की दो पार्टी मुख्य दल रहे जिसमे की स्थायी सरकार की सम्भावना अधिक रहती है हम जानते हैं की संघ के प्रभाव वाली पार्टी बीजेपी १९९० में एक लहर के परिणामस्वरूप आश्चर्यजनक रूप से उभरी, और यही लहर इसको संघर्ष की राजनीति से परिचित नहीं करवा पायी जिस पर आगे चर्चा की जायेगी !
हम जानते हैं की १९९१ की कांग्रेस की सरकार एक लचर सरकार थी जो विश्व बेंक और उदारीकरण की नीतियां लायी, सबसे बड़ी विपक्ष की गलती यहाँ ही थी, या कहें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की मिलीभगत या विदेशी दबाव यहाँ साफ़ दीखता है, जब उदारीकरण हो रहा था ,जिस समय हमारे संसाधन विदेशी हाथो में जा रहे थे, जब रोजी रोटी, रोजगार और हमारे प्राक्रतिक संसाधनों पर हक हकूक पर चर्चा होनी चाहिए थी तो विपक्ष भावनाओ की राजनीति में व्यस्त था, विपक्ष को ये भान ही नहीं था की हम आर्थिक गुलाम बनने जा रहे हैं, और हमें एक ऐसा उदारीकरण मिला जिसने अमीर गरीब की खाई को और बढा दिया, भारत भले ही चमक गया हो परन्तु भारतीय और बुरी दशा में गए !
इसके बाद की सरकारे आई जी खिचड़ी सरकारे थी, जिन पर चर्चा यहाँ का विषय नहीं है फिर बीजेपी की प्रथम स्थायी सरकार आई जिससे देश को बहुत उम्मीदे थी लेकिन ये भी कांग्रेस की तरह ही निकली. जनता को जल्द ही पता चल गया की राष्ट्र , धर्म, गौरव, संस्कृति आदि की बातें मात्र छलावा साबित हुई. इंडिया शाईनिंग का नाटक फेल हो गया और २००४ से बीजेपी का मुख्य विपक्षी पार्टी का सफर शुरू हुआ और जो कांग्रेस की निक्कमी सरकार के लिए आनद का सफर रहा !
बीजेपी ने भारत को कभी मजबूत विपक्ष नहीं दिया जिस्जा लाभ कांग्रेस ने बखूबी उठाया, बीजेपी का अटल चेहरा छुप जाना भी इसका मुख्य कारण रहा क्योंकि नए पीढ़ी के नेता संघर्ष से परिचित नहीं थे और ४० साल से राजनीति कर रहे आडवानी जी कभी इस बात को एहसास नहीं करा पाए की एक विपक्ष के रूप में जनता की समस्याओं पर वो सरकार को घेर रहे हैं ...!
बीजेपी का इतिहास है की उसने मुद्दों को छोड़कर भावनाओ की राजनीति की है उत्तर प्रदेश से जहाँ उसने अपना शानदार आगाज़ किया था वहा भी उसका जनाधार नहीं बच पाया, बीजेपी की रणनीतिक भूलो की एक लंबी लिस्ट है मगर जो मुझे एक विपक्ष के रूप में याद है वो निम्न रूप में समझी जा सकती है..... !
२००४ में बीजेपी ने सोनिया के विदेशी मूल का भावनात्मक मुददा उठाया और व्यक्तिगत आक्षेपो की राजीनीति की शुरुआत की ये एक भावनात्मक मुददा था जिसे सोनिया ने प्रधानमंत्री का पद ठुकरा कर अपना कद बढाने का आधार बनाया और वो और मजबूत हो गयी और ये तो सबको पता है की राजा से बड़ा उसे बनाने वाला होता है !
यहाँ सुषमा स्वराज की अजीब अजीब घोषणाओ ने भी बीजेपी का खूब मखौल बनाया और जनता के बीच कहीं कहीं उनके प्रति नकारात्मक सन्देश गया ! इस लोक सभा में मुख्य विपक्षी पार्टी सरकार को क्या घेरती? वो अपने अंतरकलहो से ही जूझती रही, आडवानी जी ने अपने विश्वासपात्रो से कुछ अधिक ही प्रेम दर्शा दिया जिससे बीजेपी में अन्दुरुनी घमासान मचा रहा !
बीजेपी की एतिहासिक भूल अगली लोकसभा में भी जारी रही जहाँ उसे मनमोहन सरकार के शासनकाल पर सवाल उठाना चाहिए था वहाँ उसने मुददा बनाया कमजोर प्रधानमंत्री बनाम मजबूत प्रधानमंत्री? नीतियों की चर्चा एजेंडे की, जनता को अब दोनों में से एक चुनने का विकल्प था, जनता ने आडवानी को कमजोर समझ लिया, ये व्यक्तिगत रूप से केंद्रित राजनीति का एक और उदाहरण रहा जिसमे बीजेपी ने मुह की खायी !
बीजेपी एक और अंतर्कलह होता है जो उसे कमजोर करता है, संघ की प्रष्टभूमि के नेताओ को गेर संघी नेताओं पर वरीयता मिलना जिस कारण अक्सर संघ से ऐसे नेता बीजेपी को निर्यात किये जाते हैं जिनमे राजनितिक समझ का पूर्ण आभाव होता है वर्तमान अध्यक्ष इसके उदाहरण है जो शायद किसी भी अन्य दल की अपेक्षा सबसे कमजोर हैं !
बीजेपी में अनुशासन का हमेशा आभाव रहा है, जसवंत सिंह, उमा भारती, सुषमा स्वराज, कल्याण सिंह, इत्यादी नेताओं के वक्तव्यों ने पार्टी की खूब फजीहत करवाई कई तो अंदर बहार के खेल में ही लगे रहे, आज भी पता नहीं कब कोई कौनसी किताब लिख दे , कब कोई कहीं सजदा कर दे और कब उमा भारती पार्टी मीटिंग में लड़ पड़े ये पता नहीं चलता !
अगर आपको कारगिल याद है तो याद कीजिये की अपनी जमीन में घुस आये आतंकवादियों को भागकर सेकडो जवानो की कुर्बानी को विजय दिवस के रूप में बीजेपी ही मना सकती है !
अमृतसर में खड़े जहाज को कंधार भेजकर आंतरिक मामले को विदेशी बनाने की कला कथित लोह पुरुष के ही बस की बात है !
पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष इतना कमजोर था की बेचारा स्टिंग ऑपरेशन में पैसे खाते पकड़ा गया !
चलिए आगे बढते हैं वर्तमान समय में भी बीजेपी ने विपक्ष के रूप में हमेशा गलत समय पर गलत जगह उपस्थिति दर्शायी है जेसे__
संयुक्त संसदीय समिति पर संसद चलने देना. जबकि ये सबको पता है की इसका गठन चार बार हुआ और हल कुछ नहीं निकला क्योंकी इसकी रचना ही इस प्रकार होती है की सत्ताधारी आराम से रह सकते है हाँ विपक्षियो को जो इसके सदस्य बनते हैं कुछ भत्ते जरुर मिल जाते हैं, यहाँ जनता की नजर में ये मुददा कोर नाटक साबित हुआ और विपक्षी दल मात्र नौटंकी करने वाले साबित हुए !
कामनवेल्थ, जी स्पेक्ट्रम और आदर्श घोटाला जेसे कई घोटालों पर जहाँ सरकार को आराम से घेरा जा सकता था वहा विपक्षी दल "लाल चौक " पर झंडा फेहराने निकल लिए !
अगर आपको याद हो तो बीजेपी जिस सोच का प्रतिनिधत्व करती है वो अब्दुल्ला परिवार को डा० श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कातिल मानती है पर बीजेपी ने इनसे गठबंधन किया था और उस समय कोई झंडा "लाल चौक पर फेहराना याद नहीं था !
अभी अभी जब अन्ना नेताओं पर गरज रहे थे सरकार के भ्रष्टाचार पर आंदोलन कर रहे थे तो अपने ब्लॉग पर आडवानी जी सफाई दे रहे थे, अजीब खेल है !
अब इसे सत्ता पक्ष और विपक्ष की मिली भगत मानी जाये या क्या कहा जाये जो इतने सारे मुद्दों पर विपक्ष ध्यान नहीं देता है !
बीजेपी की सबसे बड़ी कमी यही है की वो यथार्थ और व्यावहारिकता से दूर भावनात्मक और व्यक्तिगत आक्षेपो और संप्रदाय विशेष पर केंद्रित राजनीति पर ही अटकी है जबकि भारत की जनता पिछले २० सालो में बहुत परिपक्व हो गयी है इसलिए बीजेपी केन्द्र की राजनीति में निरंतर बुरी अवस्था में है !
हम आशा करते हैं की बीजेपी अपनी भूलों से सबक ले और भारत की संसद में विपक्ष की भूमिका असरदार तरीके से निभाए ताकि एक आदर्श लोकतंत्र की स्थापना हो सके ............!

अंत में { एक सवाल अन्ना से पूछना था आखिर अन्ना आप बीजेपी का समर्थन लेने किस आधार पर गए ? क्या आपको लगता है की बीजेपी ने लोकतंत्र को प्रभावी बनाने और भ्रष्टाचार पर सरकार को घेरने का कोई प्रयास किया है, दरअसल आपकी भी अपनी महत्वकांक्षाएं है ..पर ऐसे थोड़े ही होता है }

____________मीतू Copyright © 20 July 2011 at 20:50

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1 comment:

  1. इस पोस्ट को लिखने का आधार साफ़ कर रही हूँ कांग्रेस की राजनीति एक कमजोर विपक्ष के कारण हमेशा मजबूत होती रही है, आपातकाल में जहाँ विपक्ष ने कांग्रेस को बुरी गत दिखा दी थी उसके बाद से आज तक भारतीय संसद को ऐसा विपक्ष नहीं मिला है.. इसी कारण कांग्रेस इतनी निरंकुश शासन करती रही है, ये हामाम के नंगो पर आधारित पोस्ट है, शायद आप पढ़ने का जोखिम ले सकते हैं अगर आप बीजेपी या कांग्रेस की विचारधारा के गुलाम हो तो मेरा निवेदन हैं इसको न पढ़ें ;-)

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